मुंबई: मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (एमपीजे) की मुंबई यूनिट ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर 10 दिसम्बर 2021 को यहाँ सद्भावना मंच के सहयोग से "भारत में मानव अधिकार - वर्तमान परिदृश्य" पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया। इस प्रेस कांफ्रेंस में सुश्री यशोधरा साल्वे, सामाजिक कार्यकर्त्ता , श्री हसन कमाल पत्रकार और साहित्यकार, श्री रमेश कदम, अध्यक्ष, एमपीजे (मुंबई), श्री विश्वास उतागी,अर्थशास्त्री और बैंकर ,श्री इलियास ख़ान फ़लाही, उपाध्यक्ष, जमात-ए-इस्लामी हिंद (महाराष्ट्र) और डॉ सलीम खान राजनीतिक विश्लेषक ने मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अपने विचार रखे।
ग़ौर तलब है कि, देश में मानव अधिकारों का हनन एक बड़ी समस्या है।
आज लोगों के उन अधिकारों का हनन हो रहा है, जो उसे बतौर एक इंसान पैदा होने के नाते प्राप्त
होते हैं। जिसमें इज्ज़त के साथ जीने और फलने फूलने का अधिकार शामिल है। मानव अधिकार
सार्वभौमिक है। इन अधिकारों की मान्यता वैश्विक स्तर पर है। हालांकि, देश का संविधान
भी नागरिकों को इज्ज़त के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन देश में मानवाधिकारों
के हनन पर लगाम लगने के बजाए, दिनों-दिन हनन का मामला बढ़ता ही जा रहा है। सच
कहें तो, मानवाधिकारों
का हनन आजकल हमारे जीवन की दिनचर्या बन गया है। मॉब लिंचिंग, धार्मिक स्थलों
पर हमले और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाना भारत में मानवाधिकारों के हनन के कुछ उदाहरण हैं। मानव अधिकारों के हनन के संदर्भ में अगर महिलाओं
की बात करें तो, महिलाओं के एक इंसान होने के नाते जो उनके जन्मजात अधिकार हैं, उसकी बात तो
रहने ही दीजिए। हाल के दिनों में महिला उत्पीड़न के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा है कि साल 2021 के गत आठ महीनों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों
की शिकायतों में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यही हाल सामाजिक और
आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के अधिकारों का है। श्रमिकों को भी उनके न्यायोचित अधिकार
नहीं मिल रहे हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2020 में
देश में हो रहे मानव अधिकारों के हनन पर चिंता जताई है। इसके अलावा यूएन महासचिव की
एक रिपोर्ट में भारत उन 38 "शर्मनाक" देशों की सूची में था, जहां मानवाधिकारों
और उसके संरक्षण के लिए काम कर रहे लोगों और संगठनों का बड़े पैमाने पर दमन हो रहा
है। लेकिन स्थिति सुधरने के बजाए और ख़राब होती जा रही है। जब कि, ये भी एक सच
है कि, एक-दूसरे के
अधिकारों का सम्मान किए बिना सभ्य समाज जीवित नहीं रह सकता है।
इसलिए मुव्ह्मेन्ट फ़ॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर (एम पी जे), जो अधिकार
आधारित जन आन्दोलन है, ने लगातार बढ़ते मानवाधिकारों के हनन पर अवाम, नीति निर्माताओं
और शासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए मानवाधिकार दिवस के अवसर पर सद्भावना मंच के
सहयोग से प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया। सद्भावना मंच विभिन्न धर्मों, जातियों और
समुदाय के लोगों का समाज में शांति, सहयोग और सौहाद्र स्थापित करने के लिए काम करने
वाला एक साझा मंच है।
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