मुंबई: अन्न का अधिकार जीने का
अधिकार का नारा बुलंद करते आज यहाँ प्रदेश के अलग अलग कोने से आये राशन से वंचित
नागरिकों को प्रदेश सरकार से भीख नहीं उन्हें उनका अधिकार देने की मांग करते देखा
गया. मुंबई के आज़ाद मैदान में बड़ी तादाद में राशन से वंचित लोग जमा हो कर
अन्न के अधिकार के लिए धरने पर बैठे नज़र आये.
प्रदेश की जन आन्दोलन "मुव्हमेंट
फॉर पीस एंड जस्टिस फ़ॉर वेलफेयर" (MPJ) के प्रदेश उपाध्यक्ष रमेश कदम ने मीडिया से रूबरू
होते हुए कहा कि, “अन्न का अधिकार भारत के
नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक फ़ैसले
में कहा था कि यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि देश में कोई भी भूखा न रहे.
लेकिन, यह एक कड़वा तथ्य है कि देश की सबसे
समृद्ध अर्थव्यवस्था के रूप में जाने जाने
वाले प्रदेश महाराष्ट्र में भी भूख से संबंधित मौत होने की घटनाएँ घटित होती रही
हैं. भारत सरकार ने भूख की समस्या से
निपटने के लिए वर्ष 2013 में राष्ट्रीय खाद्य
सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) लागू किया. लेकिन
देश में खाद्य सुरक्षा होने के बावजूद लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. अधिकांश
लोगों को एनएफएसए द्वारा प्रदत्त उनके खाद्य सुरक्षा अधिकार नहीं मिल पा रहा है.”
एमपीजे के मुंबई अध्यक्ष शब्बीर
देशमुख ने बताया कि, “प्रदेश में टी पी डी एस के तहत हक़दार लोगों को राशन नहीं मिलने और निर्धारित कोटे से कम मिलने
की शिकायत आम है. पीड़ित उपभोक्ता सरकारी कार्यालय
के चक्कर काटता रह जाता है, किन्तु उसकी
सुनने वाला कोई नहीं है.”
आप को बता दें कि, मुव्हमेंट फ़ॉर
पीस एंड जस्टिस फॉर वेलफेयर (एमपीजे) ने महारष्ट्र में नागरिकों के अन्न अधिकार को
लेकर एक राज्यव्यापी जनजागरण अभियान आयोजित किया था. यह अभियान दिनांक 5 जनवरी 2019 को शुरू हुआ
था और 31 जनवरी 2019 को ख़त्म होगा.
इस अभियान के अंतिम चरण में एमपीजे द्वारा प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में वंचितों को
उनके जीने का हक़ देने हेतु आज धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया है और सरकार से
मांग की गई है कि जनता को उनके जीने का अधिकार दिया जाए. इस अभियान के तहत एमपीजे
ने प्रदेश में जनजागरण अभियान चला कर जनता को उनके अन्न अधिकार के मामले में
जागरूक करने के साथ साथ सरकार से महाराष्ट्र में लक्षित जन वितरण प्रणाली के तहत राशन
वितरण को न्यायसंगत और पारदर्शी बनाने की मांग की है.
प्रेस को संबोधित करते हुए
एमपीजे के प्रदेश अध्यक्ष मुहम्मद सिराज ने कहा कि, “वर्ष 2013 में जब अन्न सुरक्षा
क़ानून आया,
उस समय महाराष्ट्र
में 8 करोड़ 77 लाख लोग अन्न सुरक्षा का लाभ पा रहे थे, किन्तु उक्त
क़ानून के तहत सात करोड़ लोगों को अन्न सुरक्षा देने का प्रावधान किया गया था, जिससे 1 करोड़
77 लाख लोग अन्न सुरक्षा से वंचित हो गए थे. तत्कालीन सरकार ने बाज़ार भाव पर केंद्र
सरकार से अनाज लेकर उन वंचित हो गए लोगों को सब्सिडी प्रदान कर के पीडीएस का लाभ दिया
था. किन्तु वर्ष 2014 में वर्तमान सरकार के
आने के पश्चात् उन लोगों का सब्सिडी आधारित
राशन बंद हो गया. राशन वितरण हेतु डिजिटल
सिस्टम अपनाये जाने के कारण भी एक करोड़ दस लाख लोग अन्न सुरक्षा के लाभ से वंचित हो
गए. इस तरह प्रदेश में कुल 2 करोड़ 87 लाख लोगों
को अन्न सुरक्षा से वंचित कर दिया गया है.”
उन्हों ने कहा कि हम महाराष्ट्र
सरकार से मांग करते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबों के लिए खाद्य
सुरक्षा एक अधिकार है, इसलिए खाद्य सुरक्षा कवर से एक भी गरीब और कमजोर को बाहर नहीं
छोड़ा जाए. इसके अलावा NFSA
के तहत एक करोड़
से अधिक पात्र लाभार्थी आधार आधारित पीडीएस प्रणाली में तकनीकी गड़बड़ी के कारण राशन
की दुकानों से राशन उठाने में असमर्थ हैं, इसलिए जब तक अंतिम व्यक्ति को AePDS में सफलतापूर्वक
पंजीकृत नहीं कर लिया जाता है, तब तक एक भी पात्र लाभार्थी को खाद्य सुरक्षा से वंचित नहीं
किया जाए. साथ ही प्राधान्य लाभार्थियों के लिए ₹ 59,000 की वार्षिक आय सीमा को बढ़ाकर
₹1 लाख कर दिया जाए तथा खाद्य सुरक्षा
नेट में अक्टूबर 2014 से राशन से वंचित कर दिए गए 1.77 करोड़ एपीएल- ऑरेंज कार्ड धारकों को वापस लाया जाए.
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