मोव्मेंट फॉर पीस एंड जस्टिस फॉर वेलफेयर(एमपीजे) ने राज्य
के लाखों असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को उनका अधिकार तथा न्याय दिलाने के लिए 1 मई 2017 से एक राज्यव्यापी
अभियान की शुरुआत की थी, जो 25-05-2017 को प्रदेश भर में
जिलाधिकारी के माध्यम से माननीय मुख्य
मंत्री को ज्ञापन सौंपने के बाद संपन्न हुआ। दरअसल मुल्क में रोज़गार हमेशा से ही
एक बड़ी समस्या रही है। बेरोज़गारी की मार तो हम झेल ही रहे हैं, लेकिन जो लोग
रोज़गार में लगे हैं, उनकी सामाजिक एवं आर्थिक हालत भी बहुत अच्छी नहीं है।
क्योंकि, आज मुल्क में रोज़गार से लगे तक़रीबन 94% लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर के अपना जीवनयापन
कर रहे हैं। यदि उनके परिवार के सदस्यों को
भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो वे देश की कुल आबादी का लगभग
70% हिस्सा बनते हैं। यह वह लोग हैं जिनकी गरीबी खत्म होने का नाम नहीं लेती
है। अक्सर असंगठित कामगारों को रोजगार के
लिए दरबदर की ठोकरें खानी पड़ती है।
उन्हें हर दिन काम नहीं मिलता और अगर काम मिला भी तो मजदूरी उपयुक्त नहीं
होती है। ऐसे कम आय वाले मजदूर अपने
स्वास्थ्य को लेकर भी परेशान दिखते
हैं। उनके लिए सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं
भी अपर्याप्त हैं।
असंगठित क्षेत्र में नौकरी के लिए कोई सेवा शर्त लागू नहीं है
और न ही श्रमिक जहाँ काम करते हैं, उनके नियोजक किसी नियम और क़ानून
का पालन करते हैं। अक्सर ऐसे नियोक्ता सरकार से रजिस्टर्ड भी नहीं होते हैं। उन्हें
मज़दूरी के सिवा और किसी तरह का कोई लाभ भी नहीं मिलता है। उन्हें न तो सामाजिक सुरक्षा
प्रदान की जाती है और न ही ओवरटाइम, पेड लीव, बीमार
होने पर सिक लीव या इस तरह का कोई अन्य लाभ
दिया जाता है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि, असंगठित क्षेत्र में देश की बहुसंख्यक
कामगार आबादी काम कर रही है, इसके बावजूद यह क्षेत्र व्यापक रूप से सरकारी
नियंत्रण से बाहर है। जब की असंगठित मज़दूर का देश की जी डी पी में तक़रीबन 60 % योग दान है। इन के लिए सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बहुत कुछ नहीं है।
देश
में मज़दूरों के हितों के लिए काम करने वाले श्रमिक अधिकार संगठनों के लम्बे संघर्ष और प्रयासों के बाद, भारत सरकार ने "असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008" बना कर मज़दूरों के कल्याणार्थ कार्य करने की
क़ानूनी पहल की। यद्यपि 30 दिसंबर 2008 से लागू किया गया यह क़ानून, असंगठित श्रमिकों की मांगों और आकांक्षाओं को पूरा नहीं करता
है,
किन्तु इस क़ानून का श्रमिक संगठनों से लेकर आम जन तक ने स्वागत
किया।
किन्तु दुर्भाग्यवश देश की सब से मज़बूत अर्थव्यवस्था वाले
राज्य महाराष्ट्र में अभी तक यह क़ानून कार्यान्वयन की प्रतीक्षा कर रहा है। असंगठित
श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अनुसार महाराष्ट्र राज्य सामाजिक सुरक्षा
बोर्ड का गठन किया जाना था, जिसे असंगठित श्रमिकों के लिए जीवन और विकलांगता कवर, स्वास्थ्य
और मातृत्व लाभ,
बुढ़ापा संरक्षण और किसी भी अन्य लाभ जैसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं
को शुरू करने की सिफारिश राज्य सरकार से करती है।
राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को असंगठित श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य
बीमा योजना, 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुके श्रमिकों को पेंशन प्रदान करने, लाभार्थी
की मृत्यु होने पर परिवार के लोगों को राहत देने, लाभार्थियों के लिए हाउस
बिल्डिंग ऋण और अग्रिम योजना, लाभार्थियों के बच्चों की शिक्षा के लिए वित्तीय
सहायता प्रदान करने के लिए योजना बनाने, महिला लाभार्थियों को मातृत्व लाभ
प्रदान करने के लिए योजना आदि जैसे विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं बनाने का पूरी तरह से अधिकार है।
लेकिन
अभी तक महाराष्ट्र में उपरोक्त राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का गठन नहीं हुआ है, जो राज्य के असंगठित श्रमिकों के साथ अन्याय है। एम पी जे ने महाराष्ट्र राज्य के लाखों
असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को न्याय प्रदान करने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री मंत्री
को ज्ञापन सौंप कर असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 को महाराष्ट्र राज्य
में अक्षरशः लागू करने की मांग की है। इसके साथ ही उक्त क़ानून के तहत उल्लिखित योजनाओं
के साथ-साथ नयी बनने वाली योजनाओं का लाभ गरीबी रेखा के नीचे या गरीबी रेखा के ऊपर
जैसे भेदभाव के बिना भेद-भाव सभी असंगठित श्रमिकों को दिए जाने की मांग की है। इसके साथ ही सभी असंगठित श्रमिकों को ईएसआई सुविधाएं
देने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई)
को टर्मिनल रोगों को कवर किये जाने और कवरेज
की मात्रा 1,00,000 तक बढ़ाने की मांग
की है। असंगठित श्रमिकों की आकस्मिक या गैर-आकस्मिक
रूप से मृत्यु हो जाने की स्थिति में न्यूनतम 5 लाख रूपए बतौर मुआवज़ा दिए जाने के
साथ-साथ त्रिपक्षीय मॉडल पर एक पारदर्शी शिकायत निवारण तंत्र विकसित किया जाने की
भी मांग रखी गयी है, जिसमें नियोक्ता, श्रमिक और सरकार के प्रतिनिधि शामिल हों।
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